स्वयं का फुटवियर साइज सिस्टम विकसित कर रहा है भारत
त्रिविमीय (3डी) फुट स्कैनर |
विश्व का एक प्रमुख फुटवियर बाजार और निर्माता होने के बावजूद भारत में फुटवियर साइज का अपना कोई पैमाना नहीं है। हमारे देश में आज भी दूसरे देशों की फुटवियर साइज प्रणाली चलन में है, जबकि चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर निर्माता देश है।
विदेशी फुटवियर साइज के प्रचलन की अपनी कठिनाइयां हैं। किसी भिन्न भूगोल, किसी अन्य देश के लोगों और भारतीय पैरों के आकार-प्रकार में भिन्नता स्वाभाविक है। ऐसे में विदेशी पैरों के आकार के हिसाब से बनाये गए जूते-चप्पल भारतीयों के लिए असुविधाजनक हैं।
भारतीय मानक ब्यूरो ने आईएस 1638-1969 के तहत अपना फुटवियर साइज मानक 1969 में अधिसूचित किया था। यह स्थिति आदर्श नहीं कही जा सकती। पिछले पाँच दशकों के दौरान भारतीय बच्चों, युवाओं और वयस्कों के पैरों के आकार-प्रकार और उनकी फुटवियर आवश्यकताओं में खासा बदलाव है। ऐसे में, इस मानक में सुधार आवश्यक है। लंबे समय से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारतीय पैरों के आकार-प्रकार और प्रकृति के अनुरूप एक भारतीय फुटवियर साइज सिस्टम विकसित किया जाए।
भारतीय केंद्रीय चर्म शोध संस्थान (सीएलआरआई) देसी फुटवियर साइज प्रणाली को विकसित करने के लिए देशव्यापी सर्वेक्षण कराने जा रहा है। सर्वेक्षण के आंकड़ों के आकलन और विश्लेषण के आधार पर भारत स्वयं के ‘फुटवियर साइज सिस्टम’ विकसित करने के मार्ग पर आगे बढ़ेगा। इसके जरिये ठोस एवं विश्वसनीय आंकड़े जुटाए जाएंगे। इस देशव्यापी सर्वेक्षण में भारतीयों पैरों के आकार की व्यापक और गहन पड़ताल होगी। इस फुट सर्वे का मुख्य उद्देश्य भारतीय पैरों की मानवमितिय (एंथ्रोपोमीट्रिक) प्रकृति से संबंधित आंकड़े जुटाना है।
भारतीय बच्चों, युवाओं और वयस्कों के पैरों के आकार-प्रकार और उनकी फुटवियर आवश्यकताओं में खासा बदलाव है। ऐसे में, इस मानक में सुधार आवश्यक है। लंबे समय से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारतीय पैरों के आकार-प्रकार और प्रकृति के अनुरूप एक भारतीय फुटवियर साइज सिस्टम विकसित किया जाए।
सर्वेक्षण के लिए सबसे पहले सैंपल साइज का निर्धारण किया जाएगा। वहीं मापन के पैमाने के लिए भौगोलिक, नस्लीय, सामाजिक एवं जैविक पहलुओं को चिंह्नित किया जाएगा। सर्वे में अपेक्षित विश्वसनीय स्तर और किसी भी व्यापक मानवीय सर्वे में अंतर्निहित त्रुटियों की आशंका के आधार पर पैर मापन के लिए आवश्यक न्यूनतम सांख्यिकीय संख्या की गणना की जाएगी। इसके लिए देश को चार क्षेत्रों- उत्तर, दक्षिण, पूर्व (पूर्वोत्तर एवं शेष पूर्वी भाग) और पश्चिम क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। ‘पैरों की वृद्धि के पैमाने’ पर लोगों को लैंगिक एवं विभिन्न आयु वर्गों में भी वर्गीकृत किय गया है-
सी ग्रुप- बालक (4 से 11 वर्ष आयु के बालक एवं बालिकाएं)
जी ग्रुप- लड़कियां (12 से 18 वर्ष की किशोरियां)
बी ग्रुप- लड़के (12 से 18 वर्ष की आयु के किशोर)
डब्ल्यू ग्रुप- महिलाएं (19 से 55 वर्ष की महिलाएं)
एम ग्रुप- पुरुष (19 से 55 वर्ष के पुरुष )
सीएलआरआई की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘बेहतर सर्वे और बेहतर सांख्यिकीय परिणामों के लिए देश भर में कुल 2 लाख पैरों के नमूने लिए जाएंगे, जिसका अर्थ होगा कि चारों क्षेत्रों में इन सभी पाँच श्रेणियों में हमारे पास प्रत्येक के 40,000 नमूने होंगे।’
पैरों के नमूने लेने के लिए थ्री डी डिजिटल इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें ऑप्टिकल लेजर स्कैनिंग के जरिये पैर के 20 से भी अधिक विभिन्न बिंदुओं की स्वचालित रूप से माप ली जाएगी। स्कैन किया हुआ डाटा क्लाउड पाइंट स्वरूप में होगा, जिसे सीएसवी, डीएक्सएफ, वीआरएमएल और एसटीएल जैसे विभिन्न फाइल फॉर्मेट में सेव करने के साथ कहीं भी भेजा जा सकता है। यह विभिन्न सांख्यिकीय पड़तालों में काम आएगा।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार चमड़े और फुटवियर उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने में लगी है। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2020 के अंत तक देश से 900 अरब रुपये का चमड़ा एवं फुटवियर निर्यात संभव हो। अगले पांच वर्षों के दौरान भारतीय फुटवियर बाजार के 9.6 प्रतिशत की सम्मिलित वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ने का अनुमान है।
Source : इंडिया साइंस वायर