हल्के भीमकाय ग्रहों के लिए आवश्यक है धातु-संपन्न परिवेश
नई दिल्ली: अनंत ब्रह्मांड असीमित रहस्यों से भरा है। वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधानों की सहायता से रहस्य की इन परतों को खोलने का प्रयास निरंतर जारी है। इसी कड़ी में यह पता चला है कि हमारी पृथ्वी से अत्यंत दूरी पर स्थित ग्रह, सूर्य जैसे गैर-सौरीय ग्रहों या बहिर्ग्रहों (एक्सो-प्लैनेट) को आमंत्रित कर अपनी खुद की तारकीय संरचना का निर्माण करते हैं।
बहिर्ग्रहों के अध्ययन में लगे वैज्ञानिकों को ज्ञात हुआ है कि बृहस्पति जैसे हल्के, किंतु भीमकाय ग्रह के निर्माण के लिए होस्ट स्टार या मूल तारे में धातुओं से समृद्ध परिवेश का होना बहुत आवश्यक है। हालांकि दीर्घ कक्षीय भीमकाय ग्रहों के लिए ऐसी परिस्थितियों की आवश्यकता नहींहोती। यह अध्ययन ग्रहों और उनके मूल तारों की प्रकृति एवं स्वभाव की पड़ताल पर केंद्रित है। इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि दीर्घ कक्षीय दूरी से कैसे ग्रहों का निर्माण और उनका उभार होता है।
यह अध्ययन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स(आईआईए)द्वारा किया गया है, जो भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है। इसमें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की भागीदारी भी रही है।
आज तक 4,300 से अधिक ग्रहों की खोज हो चुकी है, ऐसे में उनके विभिन्न गुणों और प्रकृति कीबारीकियों को देखते हुए उनके बहिर्ग्रहों की पड़ताल करना आवश्यक हो गया है। ऐसे में, यह अध्ययन तारों और ग्रहों के बीच अंतर्संबंध, उनके सृजन एवं विकास की संभावित प्रक्रिया को समझाने की दृष्टि से अहम है।
जहाँ तक तारों का प्रश्न है, तो वे मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बने होते हैं, जहाँ अन्य तत्वों की भी थोड़ी-बहुत मात्रा होती है। ब्रह्मांडीय अध्ययन की धारा में हाइड्रोजन एवं हीलियम से भारी तत्वों को धातु के रूप में ही गिना जाता है। यह धातु सामग्री भी तारे का एक प्रमुख पैमाना है, और यह आम सहमति है कि चाहे छोटे हों, या बड़े ग्रह, उनके धातुओं से समृद्ध तारों के इर्द-गिर्द ही अधिक होने की संभावना होगी। हालांकि, यह पूरा विषय इतना जटिल है कि इसकी तमाम गुत्थियां अभी तक सुलझ नहीं सकी हैं।
इससे पहले लघु कक्षीय बहिर्ग्रहों के अध्ययन में वैज्ञानिकों को यही ज्ञात हुआ था कि धातुओं से समृद्ध मूल तारा बृहस्पति जैसे कम द्रव्यमान वाले भीमकाय ग्रह के निर्माण के लिए अत्यंत अनुकूल परिवेश प्रदान करता है। वहीं, नये अध्ययन में यह पता लगा है कि दीर्घ कक्षीय उच्च द्रव्यमान वाले ग्रहों के लिए ऐसी स्थिति आवश्यक नहीं है। इस अध्ययन में डायरेक्ट इमेजिंग तकनीक का प्रयोग किया गया है। एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष ग्रहों के निर्माण से जुड़े वर्तमान में प्रचलित एसेर्शन मॉडल के अनुरूप हैं। (इंडिया साइंस वायर)