औषधीय पौधों की खेती और संरक्षण के लिए नई पहल
नई दिल्ली : सीएसआईआर- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (CSIR-IIIM), जम्मू और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोवा रिग्पा, लेह (NISR) के बीच ट्रांस-हिमालय क्षेत्र में चुनिंदा औषधीय पौधों के संरक्षण और खेती के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसके तहत जो औषधियां सोवा रिग्पा चिकित्सा प्रणाली में इस्तेमाल की जाती है उनको उनके गुण के आधार पर पृथक करने और पृथक की गई औषधियों को दोनों संस्थानों के आपसी हित पर आधारित संयुक्त अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में प्रयोग पर सहमती बनी है।
सहमति पत्र के अनुसार CSIR-IIIM और NISR सहकारी अनुसंधान को बढ़ावा देने, विचारों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने, नए ज्ञान के विकास और उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान कौशल को बढ़ाने के विशिष्ट उद्देश्य के लिए साथ काम करेंगे। इस साझा प्रयास का मुख्य जोर सोवा रिग्पा औषधीय-पद्धति में अनुसंधान की उन्नति, और औषधीय पौधों के विकास और संरक्षण के लिए सहकारी अनुसंधान परियोजनाओं को लागू करने पर है।
सोवा रिग्पा तिब्बत सहित हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित एक प्राचीन उपचार-पद्धति है। भारत के हिमालयी क्षेत्र में ‘तिब्बती’ या ‘आमचि’ के नाम से जानी जाने वाली सोवा-रिग्पा विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। भारत में इस पद्धति का प्रयोग जम्मू-कश्मीर, लद्दाख क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा दार्जिलिंग में किया जाता है। सोवा-रिग्पा के सिद्धांत और प्रयोग आयुर्वेद की तरह ही हैं और इसमें पारंपरिक चीनी चिकित्सा विज्ञान के कुछ सिद्धांत भी शामिल हैं।
CSIR-IIIM प्रयोगशाला को 1941 में एक अनुसंधान और उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। दिसंबर 1957 में इस प्रयोगशाला को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), भारत ने अपने अंतर्गत ले लिया। वर्ष 2007 में संस्थान का नाम बदलकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (IIIM) कर दिया गया। IIIM का आधिकारिक दायित्व नई दवाओं और चिकित्सीय दृष्टिकोणों की खोज करना है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोवा रिग्पा (NISR), लेह, आयुष मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था है। ये संस्थान सोवा-रिग्पा चिकित्सा प्रणाली के पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान, उपकरण और प्रौद्योगिकी के बीच एक वैध और उपयोगी तालमेल लाने के उद्देश्य से सोवा-रिग्पा के लिए एक सर्वोच्च संस्थान के रूप में काम करता है।
(इंडिया साइंस वायर)