साइंस

वैज्ञानिकों को मिले निकटवर्ती आकाशगंगा में विलीन होते विशालकाय ब्लैक-होल

नई दिल्ली, 31 अगस्त: ब्लैक-होल, सामान्य सापेक्षता का एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना शक्तिशाली होता है कि कोई भी कण या यहाँ तक कि विद्युत चुम्बकीय विकिरण जैसा प्रकाश भी इससे बच नहीं सकता है।ब्लैक-होलमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं, परन्तु बाहर नहीं आ सकती।भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने एक ताजा अध्ययन में निकटवर्तीआकाशगंगा में विलीन होतेविशालकाय ब्लैक-होल्स का पता लगाया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, विशालकाय ब्लैक-होल(Supermassive black hole), ब्लैक-होल का सबसे बड़ा प्रकार है। ऐसा अनुमान है कि अधिकांश – या संभवतः सभी – आकाशगंगाएँ अपने केंद्रों पर एक विशालकाय ब्लैक-होल रखती हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हमारी निकटवर्ती आकाशगंगा में आपस में विलीन हो रहे तीन विशालकाय ब्लैक-होल्स का पता लगाया है, जो एक साथ मिलकर एक ट्रिपल सक्रिय गैलेक्टिक न्यूक्लियस बनाते हैं।

इस नयी खोज के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हमारीनिकटवर्ती आकाशगंगा के केंद्र में एक ऐसा ठोस क्षेत्र है, जिसमें सामान्य से बहुत अधिक चमक है। हमारी निकटवर्ती आकाशगंगाओं में घटित यह दुर्लभ घटना बताती है कि विलय होने वाले छोटे समूह बहुसंख्यक विशालकायब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशालाएं हैं और ये ऐसी दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने की संभावना को बढ़ाते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।

किसी प्रकार का प्रकाश उत्सर्जित नहीं करने के कारण विशालकाय ब्लैक-होल्स का पता लगाना कठिन होता है। लेकिन, वे अपने परिवेश के साथ समाहित होकर अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं। जब आसपास से धूल और गैस ऐसे किसी विशालकायब्लैक-होल पर गिरती है तो उसका कुछ द्रव्यमान ब्लैक-होल द्वारा निगल लिया जाता है। लेकिन, इसमें से कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में उत्सर्जित होता है, जिससे वह ब्लैक-होल बहुत चमकदार दिखाई देता है। इन्हें  एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियस-एजीएन कहा जाता है। ऐसे नाभिक आकाशगंगा और उसके वातावरण में भारी मात्रा में आयनित कण और ऊर्जा छोड़ते हैं। इसके बाद ये दोनों आकाशगंगा के चारों ओर का माध्यम विकसित करने और अंततः आकाशगंगा के विकास और उसकी आकार वृद्धि में योगदान देते हैं।

भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स) और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने मिलकर एनजीसी-7733 और एनजीसी-7734 नामक आकाशगंगा का संयुक्त रूप से अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं ने एक ज्ञात इंटर-एक्टिव आकाशगंगा एनजीसी-7734 के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन और एनजीसी-7733 की उत्तरी भुजा के साथ एक बड़े चमकीले झुरमुटनुमा (क्लम्प) पुंज कापता लगाया है। उनकी पड़ताल से पता चला है कि यह आकाशगंगा एनजीसी-7733 की तुलना में एक अलग ही गति से आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का यहाँ आशय यह भी था कि यह झुरमुटनुमापुंज एनजीसी-7733 का हिस्सा नहोकर उत्तरी भुजा के पीछे की एक छोटी, मगर अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी-7733एनरखा है।

भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर दो आकाशगंगाएं आपस में टकराती हैं तो उनके ब्लैक-होल भी अपनी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में स्थानांतरित करके पास आ जाएंगे। ब्लैक-होल्स के बीच की दूरी समय के साथ तब तक घटती जाती है, जब तक कि उनके बीच का अंतर एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए। इसके  बाद दोनों ब्लैक- होल तब अपनी और अधिक गतिज ऊर्जा का व्यय नहीं कर पाते हैं ताकि वे और करीब आकरएक-दूसरे में विलीन हो सकें। इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है।वैज्ञानिकों का मानना है कि तीसरे ब्लैक-होल की उपस्थिति इस समस्या को हल कर सकती है। आपस में विलीन हो रहे दोनों ब्लैक-होल ऐसे में अपनी ऊर्जा को तीसरे ब्लैक-होल में स्थानांतरित कर सकते हैं और तब एक दूसरे के साथ विलय कर सकते हैं।

इस अध्ययन में पहली भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला पर लगे एस्ट्रोसैट अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (यूवीआईटी), यूरोपियन इंटीग्रल फील्ड ऑप्टिकल टेलीस्कोप, जिसे एमयूएसई भी कहा जाता है, और  चिली में स्थापित बहुत बड़े आकार के दूरदर्शी (वेरी लार्ज  टेलीस्कोप – वीएलटी) से मिले आंकड़ों के साथ दक्षिण अफ्रीका में ऑप्टिकल टेलीस्कोप से प्राप्त (आईआरएसएफ) से प्राप्त इन्फ्रारेड चित्रों का उपयोग किया गया है।

अल्ट्रा-वायलेट-यूवी और एच-अल्फा छवियों ने निकल रही तरंगों के अतिम सिरे (टाइडल टेल्स) के साथ एक नये तारे के निर्माण का प्रकटीकरण करके वहाँ तीसरी आकाशगंगा की उपस्थिति का भी समर्थन किया, जो एक बड़ी आकाशगंगा के साथ एनजीसी-7733 एन के विलय से बन सकती थी। इन दोनों आकाशगंगाओं के केंद्र (नाभिक) में एक सक्रिय विशालकाय ब्लैक-होल बना हुआ है। इसलिए, इनसे एक बहुत ही दुर्लभ एजीएन सिस्टम बन जाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, आकाशगंगा के विकास को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक आकाशगंगाओं की परस्पर क्रिया है। विभिन्न आकाशगंगाएं एक-दूसरे के निकट आती हैं और एक-दूसरे पर अपना  जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण बल लगाती हैं। इस तरह आकाशगंगाओं के आपस में मिलते समय उनमे मौजूद विशालकाय ब्लैक-होल्स के भी एक-दूसरे के एक दूसरे के पास आने की संभावनाबढ़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में, द्विगुणित हो चुके ब्लैक-होल्स अपने परिवेश से गैस का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और  दोहरी सक्रिय मंदाकिनीय नाभिक प्रणाली (एजीएन) में परिवर्तित हो जाते  हैं।

यह अध्ययन शोध-पत्रिका एस्ट्रोनॉमी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन में, भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के शोधकर्ता ज्योति यादव, मौसमी दास एवं सुधांशु बर्वे के अलावा फ्रांस स्थित पेरिस ऑब्जर्वेटरी के शोधकर्ताफ्रेंकोइस कॉम्बेसशामिल हैं। अगस्त (इंडिया साइंस वायर)

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