शोधकर्ताओं ने खोजा गैस्ट्रिक रोगियों में कमजोर प्रतिरक्षा का संभावित कारण
नई दिल्ली, 26 जनवरी: हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बैक्टीरिया का सम्बन्ध पेट में दीर्घकालिक सूजन से जुड़ा है। इसकी भूमिका अल्सर, म्यूकोसा से जुड़े लिम्फोइड टिशू लिम्फोमा (MALT) में होती है, जो गैस्ट्रिक विकृतियों के रूप में उभर सकता है।इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), इंदौर के शोधकर्ताओं के एक नये अध्ययन से पता चला है कि कैसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (H. pylori) संक्रमित गैस्ट्रिक रोगियों को कमजोर प्रतिरक्षा का सामना करना पड़ता है। इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बैक्टीरिया से संक्रमित रोगियों में कमजोर प्रतिरक्षा के संभावित कारणों का पता लगाया है।
शोधकर्ताओं ने प्रतिरक्षा कोशिका की कार्यप्रणाली के मॉड्यूलेशन में हेलिकोबैक्टर पाइलोरी की बाहरी झिल्ली के प्रोटीन (OMPs), HomA और HomB की भूमिका को स्पष्ट किया है, जहाँ उन्होंने बी-कोशिकाओं के प्रतिरक्षा दमन के तंत्र का अध्ययन किया है। यह निष्कर्ष दो अलग-अलग अध्ययनों पर आधारित हैं, जो शोध पत्रिकाओं नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स और मॉलिक्यूलर इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित किए गए हैं। डॉ प्रशांत कोडगिरे के नेतृत्व में, डॉ अमित कुमार (आईआईटी इंदौर) और राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी (आरआरसीएटी), इंदौर के वैज्ञानिक डॉ रवींद्र मकड़े के सहयोग से, यह अध्ययन मॉलिक्यूलर इम्यूनोलॉजी प्रयोगशाला, आईआईटी, इंदौर द्वारा किया गया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मोटे तौर पर जन्मजात (Innate) और, शरीर के तरल पदार्थों से संबंधित (Humoral) प्रतिरक्षा कोशिका प्रणाली के रूप में दो वर्गों मेंबाँटा जा सकता है, जहाँ विभिन्न कोशिकाएं स्वतंत्र रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अतिरिक्त, ये कोशिकाएं एक दूसरे के साथ संवाद के माध्यम से एक सह-क्रियात्मक भूमिका प्रदर्शित करती हैं। बी-कोशिका और टी-कोशिका संवाद, प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रियण और उसकेकार्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो अंततः रोगजनकों को निष्क्रिय करने और मारने का मार्ग प्रशस्त करता है।
इंडिया साइंस वायर से डॉ प्रशांत कोडगिरे ने बताया है कि“एंटीबॉडी विविधता और उनका उत्पादन विशेष रूप से बी-कोशिकाओं तक ही सीमित है। कम विशिष्ट एंटीबॉडी से उच्च-विशिष्ट एंटीबॉडी का निर्माण एक प्रक्रिया है, जिसेक्लास स्विच रिकॉम्बिनेशन (Class switch recombination)कहा जाता है, जहाँ एक विशिष्ट म्यूटेटर एंजाइमबी-कोशिकाओं में इम्यूनोग्लोबुलिन जीन में उत्परिवर्तन कर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि बाहरी झिल्ली प्रोटीन HomAऔर HomBमें दो मुख्य भाग होते है, उनमें एक सतह के बाहर रहनेवाला गोलाकार डोमेन के साथ एक छोटा β-barrel डोमेन बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, HomAऔर HomBप्रोटीन के बी-कोशिकाओं के साथ उद्दीपन से महत्वपूर्ण विशिष्ट एंजाइम (Activation-induced cytidinedeaminase-AID) और इम्यूनोग्लोबुलिन जीन के ट्रांसक्रिप्शन के स्तर को क्षणिक रूप से कम कर देती है। AID एंजाइम के अधोनियमन (Downregulation), यानी जैव रसायनिक प्रक्रिया की दर में कमी से क्लास स्विच रीकॉम्बिनेशन (CSR) की हानि होती है, जिसके परिणामस्वरूप आईजीजी और आईजीए एंटीबॉडी में स्विचिंग काफी कम हो जाती है।
अध्ययन में, बी-कोशिकाओं की प्रतिरक्षा-दमनकारी प्रतिक्रिया की जाँच भी की गई है, और देखा गया है कि HomAऔर HomBसे प्रेरित कोशिकाएं IL10, IL35, साथ ही साथ PDL1, एक टी-सेल अवरोध मार्कर के स्तर में वृद्धि दिखाती हैं। यह अध्ययन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बचने के लिए रोगजनक द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मॉड्यूलेशन रणनीतियों में OMPs की भूमिका को उजागर करता है। एच. पाइलोरी रोगजनन की बेहतर समझ प्रदान करने और चिकित्सा के लिए नयी संभावनाओं की पहचान करने में भी यह अध्ययन मददगार है।
यह अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के अनुदान पर आधारित है। (इंडिया साइंस वायर)