मानव कल्याण से राष्ट्रनिर्माण की युवा संकल्पना: पवन भाई सिंधी
अहमदाबाद: मानव सेवा के सम्बंध में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का कथन है कि खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है आप खुद को दसूरों की सेवा में खो दें। कुछ इसी तरह हमारी पूरी भारतीय संस्कृति की सेवा, समर्पण और सदभाव के उच्चतम आदर्शों की भावना को परिलक्षित करती है। इसी भावना के साथ संकल्पित गुजरात में अहमदाबाद के पवन कुमार प्रकाश भाई सिधी अपने जीवन का अधिकतम समय लोगों की सेवा में समर्पित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका मानना है कि उनके द्वारा की गयी मानव सेवा ही उनके परिचय को प्रभावित करेगी।
पवन भाई सिधी मूलतः गुजरात के हैं जो कि पिता प्रकाश कुमार सिधी के देहावसान के बाद माता जी जयाबेन सिधी और पत्नी जानवी सिंधी और अपने दो बच्चों के साथ रहते हैं। अपना पूरा जीवन समाज के हित के लिए समर्पित कर चुके पवन भाई सिंधी का एकमात्र उद्देश्य है कि लोग मानव जीवन के सही अर्थ को समझें तभी यह जीवन सार्थक होगा।
पवन भाई सिधी तकरीबन 10 वर्षों से गुजरात के साथ साथ पूरे भारत में शांति, समरसता व बंधुत्व को लोगों में पुनर्जीवित करने के लिए दृढ़ आत्मविश्वास के साथ संघर्षरत हैं। वह हर एक मनुष्य के जीवन में समानता व आध्यात्मिक चेतना के विकास की कल्पना करते हैं। उनका मानना है कि इस ब्रम्हांड में सिर्फ एक ही तत्व शाश्वत है जो परमात्मा है लोगों की सेवा करना और यही सभी धर्मों का मूल भी है। क्योंकि सभी मनुष्यों की संरचना समान रूप मे पंच तत्वों से मिलकर हुई है जो ईश्वरीय ऊर्जा द्वारा संचालित है तब यहाँ भेदभाव या एक दूसरे के साथ संघर्ष के लिए जगह ही नहीं होनी चाहिए।
पवन भाई सिधी यह मानकर चलते हैं कि ज्यादातर जो संघर्ष या दुख का कारण है वह मनुष्यों का भौतिकतावाद के पीछे भागना है। अधिकांश लोग यह मानकर चलते हैं कि ज़िंदगी में शांति व सुकून के लिए पैसा जरूरी है लेकिन आप इस विषय पर गहनता से विचार करेंगे तो पता चलता है कि शांति व सुकून का समृद्धि से कोई सम्बंध नहीं है।
एक फ़कीर भी जब स्वयं के भावना से परे होकर दूसरों के हित के बारे में सोचने लगता है तो वह बिना समृद्धि के सुकून को प्राप्त करने लगता है। इसी सन्दर्भ में सुरेश सिंघल जी का एक बहुत अच्छा शेर है कि ” एक बात सिखाई हमें आखों की नीट ने, इंसान को पीट कर दिया इंसान की पीड़ ने । चिड़ियों को चुगते देख रहा था के अचानक, हंसकर कटोरा फेंक दिया एक फ़कीर ने।”
और इस चेतना के लिए आध्यात्म की ओर झुकाव तथा सत्संग का बड़ा प्रभाव होता है। स्वयं पवन भाई अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि मानवता और जीवन का जो सार है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया इसकी शुरुआत सत्संग से ही हुई है। बचपन के संस्मरण को याद करते हुए कहते हैं कि ” बचपन से मुझे पढ़ाई में कोई रूचि नहीं रही, माता-पिता हमेशा मुझे सत्संग में लेकर जाते थे जहां से आध्यात्म की ओर मेरा झुकाव बढ़ा जो धीरे धीरे और अधिक प्रगाढ़ होता गया।”
90 के दशक में जब पूरा देश राम जन्म भूमि आंदोलन के लिए संघर्षरत हुआ तब यह वही दौर है जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हिन्दू हृदय सम्राट व राम जन्मभूमि आंदोलन के नेतृत्वकर्ता अशोक सिंघल जी के सम्पर्क में आने से पवन भाई आर एस एस के साथ अनायास ही जुड़ गए जिसके बाद संघ के साथ जुड़कर उनके मन मे देशहित और कल्याण की भावना और अधिक जागृत हुई।
पवन भाई चाहते हैं कि हर एक समर्थ मनुष्य अपने आप को हर चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार कर ले क्योंकि समय कभी एक जैसा नहीं होता लेकिन बतौर मनुष्य हमें बुरे वक्त का भी उपयोग अच्छे कार्यों के लिए ही करना चाहिए अगर अच्छे वक्त का ही इंतजार करते रहेंगे तो ज़िंदगी के लिए समय कम पड़ जाएगा। यहां अधिकांश मनुष्य स्वयं के सुकून के लिए बाहर शांति की तलाश कर रहे है वह इस बात से अज्ञात है कि मनुष्य के अंदर ही शांति व्याप्त है न कि किसी भौतिक वस्तु में। लेकिन इसकी पहचान के लिए भागदौड़ के बजाय सत्संग का सहारा लेना चाहिए।
जो कि पूरे समाज के लिए हितकारी रहेगा। अगर हम अपना जीवन स्वयं के लिए ही जीते रहें तो मनुष्य और पशु में ज्यादा भिन्नताएं नहीं होगी।