“पेयजल: समस्या एवं निवारण” विषय पर राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी
‘जल है तो कल है’
नई दिल्ली, 20 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): जीवन के लिए जल, ऑक्सीजन की तरह ही एक अनिवार्य आवश्यकता है। हम जैसे-जैसे प्रगति कर रहे हैं, पेयजल संकट हमारे लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। पेयजल का बचाव और जल-स्रोतों के संरक्षण के बिना इस चुनौती से पार पाना कठिन है। ये बातें सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर), लखनऊ में “पेयजल: समस्या एवं निवारण” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी में उभरकर सामने आयी हैं।
संगोष्ठी का उद्घाटन उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक ने किया। वैज्ञानिक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री पाठक ने कहा, “अनियंत्रित जल दोहन से विकट समस्याएं सामने आ रही हैं। बोरिंग से भूजल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। शहरों में निरंतर पक्के निर्माणों से भूजल स्तर पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में, वर्षा जल का संचयन बहुत आवश्यक है। यह आवश्यक है कि समय रहते हम स्वयं जागरूक हों, और साथ ही दूसरों को भी पानी के सही तरह से उपयोग करने पर जागरूक करें।”
इस अवसर पर सीएसआईआर-आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर एस.के. बारिक ने कहा कि “हम सभी जानते हैं कि पेयजल की समस्या समूचे विश्व में है। अत: हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए और इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नदी, झील, झरने और तालाब आदि सभी को संरक्षित करके उन्हें पहले जैसी स्वच्छ अवस्था में बहाल करना होगा। इन्हें प्रदूषण से बचाना बहुत जरूरी है, ताकि स्वच्छ पेयजल प्राप्त हो सके।” उन्होंने यह भी कहा कि जल को स्वच्छ करने की प्रौद्योगिकी सस्ती एवं प्रभावी होनी चाहिए, वैज्ञानिक इसे ध्यान में रखकर कार्य करें।
आईआईएम, अहमदाबाद के प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता ने व्याख्यान में जल ऑडिट एवं जल संरक्षण के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किए। इस संगोष्ठी में 18 वैज्ञानिकों के व्याख्यान हुए और इसमें वैज्ञानिकों के अतिरिक्त शोध छात्रों सहित बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।
संगोष्ठी में सीएसआईआर-आईआईटीआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र परमार ने भी संबोधित किया। वेबिनार के माध्यम से आयोजित इस संगोष्ठी में पेयजल समस्याओं के निवारण पर व्यापक चर्चा हुई। सीएसआईआर-आईआईटीआर पहले भी पर्यावरण और खाद्य विषयों से संबंधित विषयों पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन कर चुका है।
यह महत्वपूर्ण है कि राजभाषा हिंदी में आयोजित ऐसी संगोष्ठियां जनसाधारण के लिए सुगम होने के कारण विशेष महत्व रखती हैं। (इंडिया साइंस वायर)