साइंस

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने खोजी आठ नईवनस्पति प्रजातियां

नई दिल्ली, 27 अक्तूबर (इंडिया साइंस वायर): वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) को वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट शोध के लिए जाना जाता है। एनबीआरआई ने वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी घाट में अपने अध्ययन के दौरान पिछले वर्ष आठ नई वनस्पति प्रजातियों का पता लगाया है। इसके साथ ही भारत से पहली बार नये भौगोलिक रिकॉर्ड के रूप में 26 प्रजातियों को खोजा गया है। यह जानकारी हाल में सीएसआईआर-एनबीआरआईके स्थापना दिवस के मौके पर संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एस.के. बारिक द्वारा प्रदान की गई है।

सीएसआईआर-एनबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शरद श्रीवास्तव ने बताया कि वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई इन नई प्रजातियों में लाइकेन की प्रजाति क्रेटिरिया रुब्रम, हराईला उप्रेतियाना एवं मारिओस्पोरा हिमालएंसिस, अग्रोस्टिस जीनस की एक नई प्रजाति अग्रोस्टिस बारीकी, जिरेनियम जीनस की एक तीन नई प्रजातियाँ जिरेनियम एडोनियानम, जिरेनियम जैनी,  जिरेनियम लाहुलेंस और एलाओकार्पस जीनस की एक नई प्रजाति एलाओकार्पस गाडगिलाई शामिल हैं।

NBRI scientists discovered eight new plant species
अग्रोस्टिस जीनस की नई प्रजाति अग्रोस्टिस बारीकी

लाइकेन की प्रजाति क्रेटिरिया रुब्रम असम के नगोन जिले के कोमोरकता रिज़र्व फारेस्ट से खोजी गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस प्रजाति में पहली बार ईंट जैसे लाल रंग का थैलस देखा गया, जिसकी रासायनिक पहचान होना बाकी है। क्रेटिरिया जाति की कुल 20 प्रजातियाँ अभी तक ज्ञात हो चुकी है। हराईला उप्रेतियाना को जम्मू के नट्टा टॉप में समुद्र तल से 2440 मीटर की ऊँचाई से खोजा गया है। वहीं, मारिओस्पोरा हिमालएंसिस की पहचान अनंतनाग एवं पहलगाम के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्र तल से 2240 मीटर की ऊँचाई से प्राप्त वनस्पति संग्रह से की गई है।

अग्रोस्टिस जीनस की एक नई प्रजाति अग्रोस्टिस बारीकी को पश्चमी हिमालय से खोजा गया है। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में भारत में हिमालय क्षेत्र में इस जीनस की कुल 16 प्रजातियों के साथ सबसे ज्यादा विविधिता पायी जाती है। लद्दाख में कारगिल क्षेत्र एवं हिमाचल प्रदेश में पुष्पीय सर्वेक्षण में जिरेनियम जीनस की तीन नई प्रजातियाँ जिरेनियम एडोनियानम, जिरेनियम जैनी, जिरेनियम लाहुलेंस को खोजा गया है।

NBRI scientists discovered eight new plant species

ध्रुवीय एवं शुष्क रेगिस्तानों और कम ऊंचाई वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को छोड़कर जिरेनियम जीनस अपनी 325 प्रजातियों के साथ लगभग हर महाद्वीप और पारिस्थितिकी तंत्र में पाया जाता है। जिरेनियम पौधे का उपयोग मुख्य रूप से सगंध तेल बनाने में होता है। इस तेल का उपयोग औषधीय एवं कॉस्मेटिक उत्पादों में किया जाता है। इसके साथ-साथ जिरेनियम का सजावटी पौधे के रूप में भी बहुतायत में उपयोग किया जाता है।

एलाओकार्पस जीनस की एक नई प्रजाति एलाओकार्पस गाडगिलाई को पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग से खोजा गया है। यह एलाओकार्पसी समूह का लगभग 600 प्रजातियों का सबसे बड़ा जीनस है। रुद्राक्ष का पेड़ इसी समूह से संबंधित है।

सीएसआईआर-एनबीआरआई में एरिया कॉर्डिनेटर, प्लांट डायवर्सिटी, सिस्टैमेटिक्स ऐंड हर्बेरियम डिविजन के मुख्य वैज्ञानिक डॉ टी.एस. राणा ने बताया कि “नई वनस्पति प्रजातियों का पाया जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले पूरे विश्व में इनके बारे में कहीं जानकारी मौजूद नहीं थी। कई बार किसी पौधे की उप-जातियाँ देखने में एक जैसी हो सकती हैं। लेकिन, ऐसी वनस्पति प्रजातियों के भौतिक एवं रासायनिक लक्षणों के गहन अध्ययन से उनके भिन्न गुणों का पता चलता है और उनकी पहचान नई प्रजाति के रूप में होती है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह की ज्यादातर प्रजातियाँ पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी घाट और हिमालय के जैव विविधता बहुल क्षेत्रों से पायी जाती हैं।

NBRI scientists discovered eight new plant species
नई खोजी गई लाइकेन प्रजातियां

सीएसआईआर-एनबीआरआई द्वारा जारी एक ताजा वक्तव्य में बताया गया है कि संस्थान ने गत वर्ष पादप विज्ञान से संबंधित कुल 132 परियोजनाओं पर अनुसंधान एवं विकास कार्य को आगे बढ़ाया है। इनमें 45 नई परियोजनाओं की शुरुआत की गयी है। इन परियोजनाओं में कॉटन मिशन एवं फ्लोरीकल्चर मिशन प्रमुखता से शामिल हैं। कॉटन मिशन का उद्देश्य कपास की खेती को प्रोत्साहित करना और फ्लोरीकल्चर मिशन का उद्देश्य देश के 21 प्रदेशो में पुष्प कृषि को बढ़ावा देना है।

इस संस्थान द्वारा संचालित अन्य परियोजनाओं में भारत के विलुप्त होने वाले पौधों के संरक्षण, भांग तथा अफीम में मेटाबोलाइट आनुवंशिकी, कृषि विज्ञान, चयापचय और भारतीय कमल के जीनोमिक्स पर नई बहु-प्रयोगशाला परियोजनाएं (एमएलपी) शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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