व्यावसायिक उत्पादन के लिए हस्तांतरित की गई नई सोलर कुकिंग तकनीक
नई दिल्ली, 24 सितंबर: वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की प्रयोगशाला सेंट्रल मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमईआरआई)द्वारा विकसित सोलर डीसी कुकिंग सिस्टम की तकनीक को पश्चिम बंगाल की दो व्यावसायिक संस्थाओं – आसनसोल सोलर ऐंड एलईडी हाउसऔर मीको सोलर ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर एसोसिएट्सको हस्तांतरित किया गया है।
सोलर डीसी कुकिंग सिस्टमखाना पकाने की एक सौर ऊर्जा आधारित प्रणाली है, जिसमें एक सौर पीवी पैनल, चार्ज नियंत्रक, बैटरी बैंक और खाना पकाने का ओवन शामिल हैं। खास बात यह है कि इस चूल्हे को सोलर उर्जा की बैटरी से लगभग 5 घंटे तक चलाया जा सकता है। इसमें जरूरत के अनुसार एलपीजी गैस चूल्हे की ही तरह आंच को बढ़ाया या घटाया भी जा सकता है।इस सोलर डीसी चूल्हे के उपयोग से एलपीजी के खर्च को कम करने के साथ पर्यावरण को भी दूषित होने से बचाया जा सकेगा। यह तकनीक स्वच्छ खाना पकाने का वातावरण, इन्वर्टर मुक्तसंचालन, तेज और समरूप ताप, और 1 टन प्रति घर/प्रतिवर्ष कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को बचाने की क्षमता प्रदान करती है।सीएमईआरआई की ओर से सीएसआर योजना के तहत इसे सबसे पहले आसनसोल के ब्रेल अकादमी में लगाया गया है।
सीएमईआरआई के निदेशक प्रोफेसर डॉ हरीश हिरानी ने इसके बारे में कहा किइस चूल्हे को ईजाद करने का उद्देश्य माइक्रो उद्योग को भी बढ़ावा देना है। इसे खर्च, गुणवत्ता और पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस डीसी सोलर चूल्हा को विशेष तकनीक द्वारा बनाया गया है। एसी से डीसी परिवर्तनमें 25% ऊर्जा की हानि हो जाती है, जो इस प्रणाली में नहीं होगी। इसके अलावा लागत कम करने के लिए चूल्हे को नये रूप से डिजाइन किया है जो कम से कम वोल्टेज में भी चल सके। इसमें प्रयोग की गई क्वायल 48 वोल्ट पर कार्य कर सकती है। साथ ही बाजार में उपलब्ध बैटरी से भी यह चलाया जा सकता है। इसके अलावा सोलर पावर भी इसमें प्रयुक्त डीसी बैटरी को चार्ज करता है।
भारत में अनुमानतः28 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता हैं। अगर वे सभी इस तकनीक का उपयोग करते हैं तो भारत में एक बड़ी सौर उर्जा क्रांति आ सकती है।
संस्थान के अनुसार, यह सिस्टम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को काफी हद तक कम करता है क्योंकि एलपीजी के उपयोग से भी कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। (इंडिया साइंस वायर)