हेल्थ एंड ब्यूटी

सावधान! गर्म पेय के लिए पूर्ण सुरक्षित नहीं है कागज का डिस्पोजेबल कप

नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): चाय, कॉफी या फिर अन्य पेय पदार्थों के सेवन के लिए प्लास्टिक की जगह पेपर से बने कप का
उपयोग आम हो गया है। लेकिन,पेपर कप का उपयोग भी पूर्णतः सुरक्षित नहीं है। भारतीय शोधकर्ताओं ने पाया है कि पेपर कप में परोसे जाने वाले गर्म पेय पदार्थों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण और अन्य हानिकारक तत्व घुल जाते हैं। इन दूषित पेय पदार्थों का सेवन करने पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के  एक ताजा अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है।

पेपर कप में तरल पदार्थों को रोकने के लिए आमतौर पर जल-रोधी परत चढ़ायी जाती है। यह परत प्रायः प्लास्टिक या फिर सह-पॉलिमर्स से बनी होती है। जब कप में गर्म पेय पदार्थ डाले जाते हैं तो कप को बनाने में उपयोग की गई परत से सूक्ष्म प्लास्टिक कणों का क्षरण होता है, जो अंततः उस पेय पदार्थ में घुल जाते हैं।शोधकर्ताओं का कहना है कि सूक्ष्म प्लास्टिक कण आयन, विषाक्त भारी धातुओं – पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम और अन्य जैविक तत्वों के वाहक के रूप में कार्य करते हैं। इस अध्ययन से पता चला है कि गर्म तरल पदार्थों के संपर्क में आने से 15 मिनट के भीतर सूक्ष्म प्लास्टिक कणों से बनी परत नष्ट हो जाती है। यह अध्ययन आईआईटी,खड़गपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ सुधा गोयल के नेतृत्व में उनके शोध छात्रों वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ द्वारा किया गया है।यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ हैजार्ड्स मैटेरियल्स में प्रकाशित किया गया है।

डॉ सुधा गोयलने बताया कि हमारे अध्ययन से पता चला है कि 15 मिनट तक पेपर कप में यदि 100 मिलिलीटर गर्म पेय पदार्थ (85-90 डिग्री सेल्सियस) रखा जाता है तो 25 हजार माइक्रोन (10 माइक्रोमीटर से 1000 माइक्रोमीटर) आकार के सूक्ष्म प्लास्टिक कण
उत्सर्जित होते हैं। यदि कोई व्यक्ति दिन भर में पेपर कप में तीन बार गर्म पेय पीता है, तो वह करीब 75 हजार सूक्ष्म प्लास्टिक कणों को निगल रहा है। इन कणों की एक खास बात यह है कि ये नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते।

careful! Disposable cup of paper is not completely safe for hot drinks
डॉ सुधा गोयल (बाएं) और अनुजा
जोसेफ
(दाएं)

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक कप में तरल पेय के उपयोग के कारण होने वाले हानिकारक सूक्ष्म कणों के रिसाव का अध्ययन दो तरीकों से किया है। सर्वप्रथम, 85-90 डिग्री सेल्सियस पर गर्म विशुद्ध पानी को पेपर कपों में डाला गया और फिर उन कपों में सूक्ष्म प्लास्टिक कणों एवं अन्य आयनों के रिसाव का अध्ययन किया गया है। दूसरी प्रक्रिया में, पेपर कपों को गुनगुने पानी (30-40 डिग्री सेल्सियस) में डाला गया और फिर जल-रोधी परत को सावधानीपूर्वक अलग कर लिया गया। अलग की गई प्लास्टिक परत को 85-90 डिग्री सेल्सियस पर गर्म विशुद्ध पानी के संपर्क में 15 मिनट तक रखा गया और फिर उसके भौतिक, रासायनिक एवं यांत्रिक गुणों का अध्ययन किया गया है। शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक परत के गर्म पानी के संपर्क में आने से पहले
और बाद, दोनों स्थितियों का अध्ययन किया है। 

मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में आईआईटी, खड़गपुर के निदेशक प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार तिवारी ने कहा है कि जैविक रूप से हानिकारक उत्पादों के स्थान पर अन्य उत्पादों के उपयोग को प्रोतसाहित करने से पहले स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के साथ-साथ उसके पर्यावरणीय पक्ष को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button