अपने वाहन के रूप में ततैया को ऐसे चुनते हैं सूत्रकृमि
नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): पेड़-पौधे विभिन्न प्रजातियों के कीट-पतंगों का घर होते हैं। पेड़-पौधों और कीटों-पतंगों की विविध प्रजातियों के बीच प्रायः एक अनूठा पारस्परिक संबंध देखने को मिलता है। अंजीर के पेड़ पर रहने वाले कीटों और अंजीर-ततैया के बीच परस्पर संबंध इसका एक उदाहरण है। अंजीर के पेड़ पर रहने वाले कीट एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक सवारी करने के लिए अंजीर-ततैया को वाहन के रूप में उपयोग करते हैं। ये छोटे-छोटे कीट ततैया को नुकसान पहुँचाए बिना उसकी आंतों में प्रवेश कर जाते हैं, और उसका उपयोग एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक जाने के लिए करते हैं। लाखों वर्षों से कीटों और अंजीर-ततैया के बीच यह संबंध चला आ रहा है। हालांकि, ये कीड़े, जिन्हें सूत्रकृमि के रूप में जाना जाता है, कैसे अंजीर-ततैया का चयन अपने वाहन के रूप में करते हैं, यह वैज्ञानिकों के लिए एक जटिल पहेली रही है। बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के ताजा अध्ययन में ऐसे तथ्यों का पता चला है, जो इस पहेली को हल करने में सहायक हो सकते हैं।
इस अध्ययन से पता चला है कि सूत्रकृमि आमतौर पर ऐसे ततैया का चयन करते हैं, जिनकी आंतों में अन्य कीड़ों की भीड़-भाड़ न हो। इसके साथ-साथ सूत्रकृमि ऐसी आंतों में सवारी करना पसंद करते हैं, जिसमें पहले से ही उनकी प्रजाति के कीड़े मौजूद हों। शोधकर्ताओं का मानना है कि अपनी प्रजाति के सदस्यों के साथ यात्रा करते हुए गंतव्य पर पहुँचने तक कीड़ों के लिए अपना साथी खोजने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। उनका कहना यह भी है कि जिन ततैया की आंतों में कम कीड़े होते हैं, उनके सुरक्षित रूप से गंतव्य तक पहुँचने की अधिक संभावना होती है। यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ इकोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।
भारतीय विज्ञान संस्थान के सेंटर फॉर ईकोलॉजिकल साइंसेज (सीईएस) की वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर रेनी बॉर्गेस ने कहा है कि “इस अध्ययन का एक संदेश यह है कि सूत्रकृमि जैसे बेहद सूक्ष्म जीवों की भी निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है। निर्णय लेने की इसी तरह की प्रवृत्ति मनुष्यों में भी देखने को मिलती है। हम आमतौर पर भीड़भाड़ वाली बस में सफर करने के बजाय अपेक्षाकृत रूप से खाली बस में सफर करना अधिक पसंद करते हैं।”
अंजीर के पेड़ और ततैया के बीच इस संबंध का लाभ दोनों को परस्पर रूप से होता है। एक ओर ततैया अंजीर के परागण में मदद करते हैं, तो दूसरी ओर पेड़ से ततैया को भी भोजन प्राप्त होता है। अंजीर के पेड़ पर कुछ अन्य प्रकार के कीड़े भी पाए जाते हैं, जो पूरी तरह से ततैया पर निर्भर रहते हैं। ततैया इन युवा कीड़ों को अंजीर के एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक पहुँचाते हैं, जहाँ पहुँचकर कीड़े परिपक्व होते हैं, प्रजनन करते हैं और नई पीढ़ी को जन्म देते हैं।
एक पूर्व अध्ययन के दौरान नियंत्रित परीक्षणों में शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि यदि ततैया पर सवार होने वाले कीटों की संख्या अत्यधिक हो, तो वे परजीवी में रूपांतरित होकर ततैया के साथ-साथ गंतव्य पेड़ को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, सीईएस से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता सत्यजीत गुप्ता कहते हैं कि “आमतौर पर आप पाएंगे कि सूत्रकृमि की संख्या हमेशा कम होती है।” उन्होंने कहा कि मेजबान या वाहन का चयन करते हुए सूत्रकृमि वास्तव में कैसे निर्णय लेते हैं, इस सवाल का जवाब खोजे जाने को लेकर किया गया यह एक प्रारंभिक अध्ययन है।
इस अध्ययन से पता चला है कि सूत्रकृमि ततैया की आंतों में यात्रियों की भीड़ की टोह रासायनिक संकेतों की सहायता से लेते हैं। सूत्रकृमि, उन वाष्पशील यौगिकों को सूँघते हैं, जो ततैया द्वारा अपनी पूंछ पर खड़े होकर सिर को लहराते हुए छोड़ा जाता है। जब शोधकर्ताओं ने सूत्रकृमि के समक्ष अधिक यात्रियों को ले जा रहे ततैया और कम यात्रियों को ले जाने वाले ततैया द्वारा उत्सर्जित यौगिकों के बीच चयन का विकल्प पेश किया, तो कीड़ों ने कम यात्रियों को ले जाने वाले ततैया को चुना। एक हैरान करने वाला तथ्य यह भी उभरकर आया है कि सूत्रकृमि, ततैया द्वारा ले जाए जाने वाले अपनी प्रजाति के कीटों की संख्या का पता तो लगा लेते हैं, पर वे ततैया की आंतों में दूसरी कीट प्रजातियों की मौजूदगी का पता नहीं लगा पाते।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीड़े, जो अलग-अलग प्रजातियां हैं, अपने वाहन पर निर्णय लेने के लिए विभिन्न कारकों का उपयोग करते हैं। शाकाहारी कीट खाली वाहनों को पसंद करते हैं, लेकिन वे जोड़े में सफर करना पसंद करते हैं, ताकि गंतव्य तक पहुँचने पर उन्हें प्रजनन हेतु साथी सुनिश्चित रूप-से मिल जाए। दूसरी ओर, मांसाहारी कीट, ततैया के रूप में उन वाहनों को पसंद करते हैं, जिसमें पहले से ही उनकी अपनी प्रजातियों के कुछ सदस्य सवार होते हैं। (इंडिया साइंस वायर)
अंजीर फल की सतह पर परागण करने वाले ततैया (फोटो: निखिल मोरे)